सावन की रात
दक्षिण की हवा चलती है
राह नहीं मिलती।
जो चाहा था वो भूल हुई,
जो पाया है वो चाहा नहीं।
मैं घूमता हूँ
मैं घूमता हूँ
मैं घूमता हूँ
– Poem by Gulzar.
I travel slow, I click, I write.. and I do it ever so spiritually
सावन की रात
दक्षिण की हवा चलती है
राह नहीं मिलती।
जो चाहा था वो भूल हुई,
जो पाया है वो चाहा नहीं।
मैं घूमता हूँ
मैं घूमता हूँ
मैं घूमता हूँ
– Poem by Gulzar.
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