ख़ुद पे यक़ीन था उस पंछी को,
दिल का भी पक्का था।
फिर भी अक्सर, अपनी परछाईं पानी में देखता,
तो सोचता कि ये पंख और बड़े होते तो कितना अच्छा होता।
फिर ख़ुद ही को समझाता,
कि पंख होते ही ना, ज़िंदगी तो तब भी होती।
मायूस हो जाता था ख़ुद से कभी कभी,
कुछ ना करता, कई दिन तक उड़ान ना भरता।
फिर ख़ुद ही को समझाता,
कि पंख ना भी होते, ज़िंदगी तो तब भी होती।
ज़िंदगी तो तब भी होती…

Nice
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Beautiful expression. Thank you
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